Saturday, December 16, 2006

सरद-काल

सरद-काल


सरद काल
गुड़ मिला भात
मक्की की रोटी
सरसों का साग
वाह! भई क्या बात।

सरद काल
ख़िला ग़ुलाब
गेंदा आबाद
क़ुदरत तेरा कमाल।

सरद काल
ब्याह की ढ़पताल
पंडितों की मालामाल
घोड़ी बेहाल।

सरद काल
रजाई गद्दा का सवाल
ग़रीब के जी का जंजाल।

सरद काल
धूप का अकाल
बिजली की किल्लत
जीवन बेहाल।

सरद काल
क्रिकेट का बुख़ार
टीवी के आगे बैठने को लाचार।

(कम्प्यूटर ख़राब था इसलिए इतने दिनों बाद )

3 comments:

Udan Tashtari said...

वाह वाह, बेहतरीन वापिसी. अब तो कम्प्यूटर ठीक हो गया, अब शूरु हो जायें.

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब! अब नियमित लिखें!

Manish Kumar said...

बहुत दिनों तक खराब रहने दिया आपने कंप्यूटर !
शरद ऋतु के विभिन्न पहलुओं को इन क्षणिकाओं के माध्यम से बखूबी उभारा है आपने !

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