ये हैं केबिन महाशय। ये साढ़े चार साल के हैं। इनके घर के पास ही रामलीला होती है। ये रोज शाम को अपने भाई और दोस्तों के साथ पार्क में खेलने जाते हैं। पार्क के बाहर ही दुकानें सजी हैं। बस रोज नए सामान आ जाते हैं। कल ये रुप सजाया गया।
Wednesday, October 08, 2008
हम हैं राक्षस
ये हैं केबिन महाशय। ये साढ़े चार साल के हैं। इनके घर के पास ही रामलीला होती है। ये रोज शाम को अपने भाई और दोस्तों के साथ पार्क में खेलने जाते हैं। पार्क के बाहर ही दुकानें सजी हैं। बस रोज नए सामान आ जाते हैं। कल ये रुप सजाया गया।
Sunday, October 05, 2008
नन्हों के लिए
१
कबूतर
कबूतर! इतना मोटा क्यों?
ज्यों चील का पोता हो!
पंजे-चोंच लाल हैं पर!
‘ग्रे कलर’ है तेरा क्यों?
(२)
बिल्ली
बिल्ली न्यारी-न्यारी है,
‘म्यांऊँ’ करती प्यारी है।
छूने में रूई ज्यों,
पंजे इतने तेज क्यों?
(३)
डॉगी
डॉगी भौं-भौं करता है,
बात का पक्का है!
प्यार बहुत वह करता है,
मालिक के लिए मरता है!
(४)
चींटी
चींटी! इतनी छोटी हो?
मोटी क्यों नही होती हो?
भागी-भागी रहती हो,
क्यों नहीं रुकती रहती हो?
कबूतर
कबूतर! इतना मोटा क्यों?
ज्यों चील का पोता हो!
पंजे-चोंच लाल हैं पर!
‘ग्रे कलर’ है तेरा क्यों?
(२)
बिल्ली
बिल्ली न्यारी-न्यारी है,
‘म्यांऊँ’ करती प्यारी है।
छूने में रूई ज्यों,
पंजे इतने तेज क्यों?
(३)
डॉगी
डॉगी भौं-भौं करता है,
बात का पक्का है!
प्यार बहुत वह करता है,
मालिक के लिए मरता है!
(४)
चींटी
चींटी! इतनी छोटी हो?
मोटी क्यों नही होती हो?
भागी-भागी रहती हो,
क्यों नहीं रुकती रहती हो?
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