Monday, March 09, 2009

ब्रज की होली

कदम्ब छांव।
मारे होली के दांव।
ब्रज के गांव॥


नंद-यशोदा।
लाए होरी कौ सौदा।
कान्हा है मोदा॥


हे ग्वाल-बाल!
बजाओ ढ़प ताल!!!
मचे धमाल॥


कान्हा कौ सखा।
दामा दाऊ ने लखा।
भागा वो झखा॥


रंग ले भागे।
कान्हा के दामा आगे।
अब ना लागे॥


दाऊ आओ तो!
याकू रगड़ो पोतो!
जो भागे रोतो॥


कृष्ण-सुदामा!
ह्वै रहयो हंगामा!
दाऊ श्रीदामा॥

Sunday, March 08, 2009

होली
















पतझड़ बाद जब पत्ते आते!
पेड़ नए-नए हो जाते!
फूल खिलखिलाकर मुस्काते,
उन पर भंवरे भी मंडराते।
रंग-गुलाल-अबीर उड़ाते,
हम सब टोली में बँट जाते।
भर पिचकारी खूब भिगाते,
गुझिया, पापड़, भल्ले खाते।
हंस-हंस कर सब शोर मचाते,
यूं होली का पर्व मनाते।

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