Sunday, September 09, 2007

कविता

जब तार हृदय के छिड़ जाएँ,
हर बार नयी ध्वनि बिखराएँ,
तीखी-मीठी गुंजन सी फैलाएँ,
मन की सुध-बुध भी बिसराएँ,
तब कुछ कहने की इच्छा होती है,
जो कविता की हलचल होती है।
वो मन की गांठ खोलती है,
भावों की झोली टटोलती है,
शब्दों का रूप सजाकर,
अर्थों की अनुभूति कराकर,
अंतरतम को यूँ लगे छिपाकर,
रचना की डोली उतरती है,
जो कविता सुंदरी होती है।
सब कुछ हो जाता है अपना सा,
जीवन लगता है सपना सा,
पंछी जैसे उड़ती है हर बात,
भावों के होते हैं दिन और रात,
तब कविता ही प्रियतमाहोती है,
हर बात उसी की होती है,
हर बात उसी से होती है।

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