Tuesday, August 29, 2006

चाँदनी-रात


चाँदनी रात हरेक को प्रभावित करती है। योगी एकाग्रता की कोशिश करता है, जोगी प्रभु पाने की इच्छा! और मौजी मौज लेता है तो रोगी नींद। किसी को ये नैसर्गिक छटाएँ बहका देती हैं तो किसी को रुला देती हैं। किसी की वाह! निकलती है तो किसी की आह! कोई डरता है तो कोई मरता! किसी की रात कटती नहीं तो किसी की बढ़ती नहीं। हर रस और भाव में हमें रात बदली-बदली नज़र आती है।
रात रुपसि को रौनक़ लगे,
अंधकार साकारता को हरे।

सवेरे का प्रकाश बताएगा सच,
तू और मैं का मान कराएगा बस।

जो अन्तर है अंधेरे और प्रकाश में,
वही होता है भ्रम और विश्वास में।

सच तो ये है कि समय यूं रुका ही नहीं,
अगर रुक गया तो रहेगा कहीं का नहीं॥

Tuesday, August 22, 2006

दया-धर्म

दया धर्म की मूल है,
आज हो गयी फिजूल है,
दया तो दिखायी जाती है,
उसकी क़ीमत लगायी जाती है,
दया तो अपनों पर की जाती है,
दूसरों को तो दया की सीख दी जाती है।
*

धर्म एक रास्ता है,
जो सत्य-अहिंसा से साजता है,
पर आज यह बदल गया है,
इसका रुप बिगड़ गया है,
हो गया है बहुत सँकुचित,
बताता नहीं क्या है अनुचित,
कोई रास्ते की गंदगी साफ कर दो,
समभाव की टाइल्स बिछा दो।
***

Monday, August 21, 2006

प्रकृति की पुकार


यह तो हम सब को सुनकर अमल करना ही पड़ेगा वरना !!!
...परिणाम भी ना देख पाएँगे।

Wednesday, August 16, 2006

श्रीकृष्ण-दर्शन



श्रीकृष्ण-‘जीवन-दर्शन’

आज श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी है। भगवान ने श्रीकृष्ण के रुप में द्वापर युग में अवतार लिया। सभी अवतारों में श्रीकृष्ण सर्वश्रेष्ठ सम्पूर्ण कलाओं से युक्त और सभी गुणों के प्रणेता एक व्यवहारिक महापुरुष हैं, जिंहोंने प्रेम को जीवन का आधार बताया, परंतु कर्त्तव्य के सम्मुख मन को नियँत्रित करने का उदाहरण प्रस्तुत किया। तभी तो श्यामाश्याम की जोड़ी बनाने वाले एवं अगाध प्रेम और श्रृंगाररस के महानायक ब्रज छोड़कर चले गये और ज्ञान की पराकाष्ठा के लिए कभी वापिस नहीं आए।
वास्तव में कृष्ण एक जीवन दर्शन है जो पग-पग पर हमें दृष्टिकोण प्रदान करने में सहायक है, बशर्ते हम उसे गहनता से समझ लें।
श्री कृष्ण के प्रादुर्भाव की कहानियों से लेकर उनके अंत तक की घटनाएँ हमें जीवन में सही रास्ता सुझाती हैं। आवश्यकता है तो बस इस बात की कि उसे संकीर्णता की चाशनी में ना डुबोया जाए बल्कि व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए संप्रदाय से ऊपर जाकर जीवन-दर्शन (संपूर्ण सृष्टि का दर्शन) की इस अमूल्य निधि को खंगाला जाय।
ज्ञान, कर्म और योग का मिश्रण जीवन में आशा का संचार करता है, जीने की कला सिखाता है तथा जीवन सफल बनाता है। सैद्धांतिक रुप से हम सभी यह बातें जानते हैं, परंतु व्यवहार और प्रयोग में चंचल मन के कारण पंच-तत्त्वों (भौतिक) की स्थूलता से बाहर नहीं आ पाते हैं, जबकि भौतिक-सुख भी कृष्ण-दर्शन को समझ कर अनुभूत किए जा सकते हैं। बस समय बाँटकर एक बार अध्ययन और मनन की आवश्यकता है।
संसार में सभी जीव सुख से रहें- ऐसी मनोकामना के साथ ‘जय श्री कृष्ण’।

Monday, August 14, 2006

जय-हिंद



पंद्रह-अगस्त
आज का दिन तो है ऐसा पावन
जैसे गर्मी में झुलसे को मिला हो सावन।
आज की बात हो नहीं सकती है शब्दों में,
इस दिन छुड़ाया था माँ को फिरंगी के कब्जों से,
धोखे से अधिकार की उनकी चाल थी,
ज़्यादा हालत बेटों की बेहाल थी।
ना सूझता था कोई और काम,
बस रटा हुआ था हरेक को तेरा ही नाम।
रोज नयी बात सबके मन में आती थी,
आजादी की विधि सुझायी जाती थी।
हर कोई हो रहा था कुर्बान अपने-आप,
माँ के नाम पर उमड़ रहे थे भाव।
बूढ़े,बालक-जवां सभी तो समझते थे ख़ुद को सिपाही,
जान पर खेलकर वीरता औरतों ने थी दिखायी।
अँगरेजों की चाल कुछ काम ना आयी,
देश के सपूतों ने ऐसी धूल चटाई।
तेरी इज़्ज़त तो हमारी इज़्ज़त है,
तेरे आँगन में खेले हैं , बड़ी क़िस्मत है।
किसकी मजाल की देखे इस तरह से अब,
आँखें निकाल देंगे मिलकर सब।
तेरे कण- कण पर लगा देंगे अपनी जान है,
तेरे हित काम आना हमारी शान है।
खून की बूँद भी सिंचेगी तेरा गात,
तेरे बेटे हैं काम आएँगे दिल से आज।

Thursday, August 10, 2006

देश-प्रेम

देश प्रेम की बात करो मत,
देश प्रेम करके दिखलाओ।
देश-देश मेरा देश कहकर
यूँ हीं ना इतराओ।
करते हो प्यार देश से तो
देश-हित मरकर दिखलाओ।
देश-प्रेम बस!
ग़ुलामी से लड़ना ही नहीं था,
देश-प्रेम बस!
आजादी के गीत गाना ही नहीं था,
देश-प्रेम है तो
देश को बड़ा बनाओ,
देश में नवीनता लाओ,
देश के कण-कण को सजाओ,
देश के जन-जन को जगाओ,
देश में सच्ची देश-प्रेम की लहर फैलाओ,
तभी देश-प्रेम है,
तभी देश-प्रेम है।
भ्रष्टाचार देशद्रोह है,
अत्याचार देश विरोध है,
हिंसा और आतंक
देश के दुश्मन हैं,
स्त्री-अपमान
देश-प्रेम में अड़चन है।
देश-प्रेम की ज्वाला में जलकर ही
देश-प्रेम नहीं होता है!
देश-प्रेम की नदी में डूब उतरना भी
देश-प्रेम होता है।
ऐसे ही बस देश-देश ना दोहराओ,
देश-प्रेम है तो
देश हित जीवन लगाओ।
देश-प्रेम है तो देश की
नदियाँ ना गदलाओ,
पहाड़ ना गिराओ,
पेड़ ना मिटाओ,
देश की हवाएँ ना जलाओ
देश में जागरण करके दिखलाओ।
देश-द्रोही से जुड़ना देशद्रोह है,
देश-लुटेरों से मिलना देश-द्रोह है,
देश-प्रेमी से भिड़ना देशद्रोह है,
देश-धन से पलना देशद्रोह है।
रिश्वतखोरी, सीनाज़ोरी,
स्त्री की इज़्ज़त की चोरी,
कर्त्तव्यों से मोड़ामोड़ी,
अधिकारों की माला जोड़ी,
तो फिर देश-प्रेम की बात करो मत,
इस देश को अपना देश कहो मत।
करते हो प्यार देश से तो
देश की कलाओं को,
देश की ज़फाओं को,
देश की बफ़ाओं को
कभी ना ठहराओ,
तभी देश-प्रेम है,
तभी देश-प्रेम है,
तभी देश-प्रेम है॥

Tuesday, August 08, 2006

रक्षाबंधन




श्रावण-मास
शुक्ल-पक्ष पूर्णिमा
रक्षाबंधन।

बहिन-भाई
राखी रोली चावल
मुँह मिठाई।

राखियाँ सोहें
भ्राता-भगिनी मोहें
खुशियाँ जो हैं।

शुभ मनाएँ
राखी बांधें या भेजें
भाई चहकें।


यह त्योहार
बाल-वृद्ध जवान
खुश समान।


बंधन-देखें
राखी नेट पर हैं
मन से सोचें।

राखी


राखी


राखी


राखी


Saturday, August 05, 2006

यह तो भूमंडल की रानी है

यह भारत भूमि की कहानी है,
जिसकी मिसाल नहीं मिल पानी है।
हिमालय है मुकुट विशाल,
रखता है इसका उँचा भाल।
नदियाँ इसकी नाड़ी हैं,
जो सींचें फुलवाडी़ हैं।
मैदान इसके वक्षस्थल हैं,
जो पालन करते सबका हैं।
पठार मरुस्थल इसके हैं,
इसकी ममता को घेरे हैं।
सागर इसके दास हैं,
इसके चरणॊं के पास हैं।
रत्नों का भंडार यहाँ,
देखे सारा संसार जहां।
साक्ष्य भरे पड़े हैं
सब आप देख रहे हैं।
वेद इसकी वाणी हैं,
यहीं मानवता की जवानी है।
कर लो अनुसंधान कभी,
मानोगे इसे प्रधान सभी।
यह तो भूमंडल की रानी है,
जन-जन की कल्याणी है॥

Friday, August 04, 2006

साहस

तूफानों का साथ,
गहरी काली रात,
निर्भीक-शांत मन,
पहुँचने का प्रण,
यही है अभीष्ट अब,
मंजिल मिलेगी कब?

ट्रैफ़िक