Wednesday, August 16, 2006

श्रीकृष्ण-दर्शन



श्रीकृष्ण-‘जीवन-दर्शन’

आज श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी है। भगवान ने श्रीकृष्ण के रुप में द्वापर युग में अवतार लिया। सभी अवतारों में श्रीकृष्ण सर्वश्रेष्ठ सम्पूर्ण कलाओं से युक्त और सभी गुणों के प्रणेता एक व्यवहारिक महापुरुष हैं, जिंहोंने प्रेम को जीवन का आधार बताया, परंतु कर्त्तव्य के सम्मुख मन को नियँत्रित करने का उदाहरण प्रस्तुत किया। तभी तो श्यामाश्याम की जोड़ी बनाने वाले एवं अगाध प्रेम और श्रृंगाररस के महानायक ब्रज छोड़कर चले गये और ज्ञान की पराकाष्ठा के लिए कभी वापिस नहीं आए।
वास्तव में कृष्ण एक जीवन दर्शन है जो पग-पग पर हमें दृष्टिकोण प्रदान करने में सहायक है, बशर्ते हम उसे गहनता से समझ लें।
श्री कृष्ण के प्रादुर्भाव की कहानियों से लेकर उनके अंत तक की घटनाएँ हमें जीवन में सही रास्ता सुझाती हैं। आवश्यकता है तो बस इस बात की कि उसे संकीर्णता की चाशनी में ना डुबोया जाए बल्कि व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए संप्रदाय से ऊपर जाकर जीवन-दर्शन (संपूर्ण सृष्टि का दर्शन) की इस अमूल्य निधि को खंगाला जाय।
ज्ञान, कर्म और योग का मिश्रण जीवन में आशा का संचार करता है, जीने की कला सिखाता है तथा जीवन सफल बनाता है। सैद्धांतिक रुप से हम सभी यह बातें जानते हैं, परंतु व्यवहार और प्रयोग में चंचल मन के कारण पंच-तत्त्वों (भौतिक) की स्थूलता से बाहर नहीं आ पाते हैं, जबकि भौतिक-सुख भी कृष्ण-दर्शन को समझ कर अनुभूत किए जा सकते हैं। बस समय बाँटकर एक बार अध्ययन और मनन की आवश्यकता है।
संसार में सभी जीव सुख से रहें- ऐसी मनोकामना के साथ ‘जय श्री कृष्ण’।

2 comments:

Udan Tashtari said...

जय श्री कृष्ण...जन्माष्टमी की आपको बहुत बहुत बधाई.

समीर लाल

ई-छाया said...

जय श्रीकृण्ण।

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