हमारे ग्रामों और क़स्बों में आज भी लक्ष्मी-पूजन भित्ती-चित्र के साथ होता है। महिलाएँ चावल को दूध में पीसकर उससे दीवार का एक चौकोर हिस्सा पोतकर उस पर गेरु से यह बनाती हैं और लक्ष्मी-दरबार सजातीं हैं। यहीं रात्रि में पूजन होता है।
गोवर्धन महाराज (श्रीकृष्ण) आँगन में गाय के गोबर से बनाकर पूजे जाते हैं। गवाले को भी उपहार या मिष्ठान इत्यादि मिलते हैं।
Sunday, October 22, 2006
परंपरा
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भित्ति चित्रण की यह परंपरा बहुत पुरानी है और क्षेत्र विशेष के अनुसार अलग अलग है. छत्तीसगढ़ में सावन के महीने में हरियाली त्यौहार पर गोबर से चित्रांकन किया जाता है. मालवा क्षेत्र में श्राद्ध पक्ष में पंद्रह दिनों तक दीवार पर चित्रांकन किया जाता है.
आजकल रेडीमेड प्लास्टिक की चिप्पियाँ भी मिलने लगी हैं जिसे लोग दीवारों पर चिपका लेते हैं. रंगोली भी प्लास्टिक के छपे-छपाए मिलने लगे हैं.
हमारे यहाँ राजस्थान के गाँवों में भी यह गोवर्धन जी की पूजा का रिवाज है । दीपावली की अगली सुबह आंगन में गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा( जैसी आपने चित्र में बताई है) बना कर उनकी तथा बैलों को रंग बिरंगे रंगों से सजा कर पूजा की जाती है। पुजा के बाद में बैलों के सामने पटाखे चला कर उन्हें भड़काने का रिवाज भी था जो अब लगभग बन्द हो गया है।
Premlata jee kidhar hain aajkal ?
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