चाँदनी रात हरेक को प्रभावित करती है। योगी एकाग्रता की कोशिश करता है, जोगी प्रभु पाने की इच्छा! और मौजी मौज लेता है तो रोगी नींद। किसी को ये नैसर्गिक छटाएँ बहका देती हैं तो किसी को रुला देती हैं। किसी की वाह! निकलती है तो किसी की आह! कोई डरता है तो कोई मरता! किसी की रात कटती नहीं तो किसी की बढ़ती नहीं। हर रस और भाव में हमें रात बदली-बदली नज़र आती है।
रात रुपसि को रौनक़ लगे,
अंधकार साकारता को हरे।
सवेरे का प्रकाश बताएगा सच,
तू और मैं का मान कराएगा बस।
जो अन्तर है अंधेरे और प्रकाश में,
वही होता है भ्रम और विश्वास में।
सच तो ये है कि समय यूं रुका ही नहीं,
अगर रुक गया तो रहेगा कहीं का नहीं॥
अंधकार साकारता को हरे।
सवेरे का प्रकाश बताएगा सच,
तू और मैं का मान कराएगा बस।
जो अन्तर है अंधेरे और प्रकाश में,
वही होता है भ्रम और विश्वास में।
सच तो ये है कि समय यूं रुका ही नहीं,
अगर रुक गया तो रहेगा कहीं का नहीं॥
3 comments:
"जो अन्तर है अंधेरे और प्रकाश में,
वही होता है भ्रम और विश्वास में।"
-बहुत सुंदर, बधाई.
चाँदनी तो कभी सबको लुभाती है तो कभी अकेलेपन में साथ भी देती है । अमृता प्रीतम की ये पंक्तियाँ याद आती हैं
अम्बर की इक पाक सुराही
बादल का इक जाम उठा कर
घूँट चाँदनी पी है मैंने......
अच्छा लिखा है आपने !
आपके मन की बातें बहुत सुंदर होती हैं और उन सुंदर बातों को खूबसूरत शब्द देने की आपकी कला भी निराली है।
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