सुख की परिभाषा
भिन्न-भिन्न हैं,
किसी का सुख
किसी को कर देता
खिन्न है।
सबको एक सा सुख
मिलना कठिन है।
सुख की बातें ही
दे देती हैं सुख,
बिना अन्न हैं।
हर कोई चाहता है पाना,
सुख का जिन्न है।
सुख जाने की सोच कर ही,
व्यक्ति हो जाता खिन्न है।
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दुःख शरीर का
कराहना देता है,
दुःख मन का
बिल्कुल तोड़ देता है।
दुःख एक ऐसा भाव होता है,
जिसके बिना सुख
कभी नहीं होता है।
दुःख का जीवन में सर्वाधिक असर होता है,
दुःख ही जीवन की अल्ट्रासाउंड-रिपोर्ट देता है।
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