Sunday, October 11, 2009

मेरा दृष्टिकोण

अबतक आए श्लोकों केबारे में मेरा दृष्टिकोण
संजय धृतराष्ट्र को युद्ध-भूमि का हाल बता रहे हैं। दुर्योधन पांडवों की व्यूहरचित सेना देखकर द्रोणाचार्य से उसके बारे में विस्तार से बता रहा है। उसने सबसे पहले व्यूह की बात करी उसके बाद मुख्य पंक्तियों में खड़े महावीरों का वर्णन किया।
-किसी भी युद्ध के लिए सामने वाले की शक्ति और योजना का पता चल जाए तो उसपर जीत हासिल करना आसान होता है। दुर्योधन द्रोण से यही समझन चाह रहा था।
- जब कभी किसी के अंदर कोई बुराई होती है तो उसके मन में चोरा आ जाता है और वह सामना करने से पहले कनखियों से उसे देखकर अनुमान लगाता है। वही दुर्योधन कर रहा था।
- शक्तिशाली सेना का स्वामी होने पर भी उसे पांडवों की सेना से भय हो रहा था क्योंकि कायर पीछे से वार करता रहा था अब आमने-साम्ने का युद्ध था जो उसे सोचने को मजबूर कर रह था पर अब बहुत देर हो चुकी थी। युद्ध तो निश्चित होगया था।
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