Friday, December 29, 2006

नया साल आने वाला ही है

निवेदन!
साल के अंत में हम सभी कुछ ना कुछ लेखाजोखा तो अवश्य करते हैं, सोचते हैं क्या अच्छा रहा क्या बुरा घटित हुआ? क्या उप्लब्ध हुआ क्या ना मिलने का अफ़सोस रहा? क्या चाहा था! क्या हो गया! अच्छी बातों के लिए हम अपनी तारीफ़ करने लगते हैं तो ना पसंद बातों के कारणों का ठीकरा किसी और के सिर फोड़ देते हैं या फिर क़िस्मत और भगवान के हिस्से कर देते है।
तकनीकी क्रांति और उपभोक्तावाद की चकाचौंध में हमारी आँखें पूरी नहीं खुल पा रहीं हैं। नए साल के पहले लेखाजोखा करते समय सभी को रौशनी की ओर पीठ करके देखना चाहिए।
सामाजिक बुराइयाँ सभी के लिए परेशानी का कारण हैं, यदि शिक्षित और समृद्ध समाज थोड़ा समय इनके उन्मूलन के प्रयोजन में लगाए तो अवश्य ही बदलाव आएगा। सामाजिक बुराइयाँ क़ानून के साथ-साथ समाज के सहयोग से ही दूर की जा सकती हैं। हम सब का कर्त्तव्य है कि अपनी-अपनी क्षमता और सामर्थ के अनुसार समाज सुधार के लिए समय दान करें।
नयी पीढ़ी(बहुसंख्यक है) के गुमराहों पर संकेतक लगाएं तथा उन्हें रास्ते चुनने में निःस्वार्थ मदद करें।
संवाद एक सर्वाधिक प्रभावशाली तरीक़ा है। उनके बीच अल्प समय बिताकर भी उनमें उत्साह और आशा का संचार किया जा सकता है। शुद्ध परामर्श और निर्देशन उनका जीवन बदल सकते हैं, परंतु इसके लिए पहले स्वयं व्रत लेना होगा, इसका परिणाम सभी के लिए सुखदायी होगा। विचारों और व्यवहार में समृद्ध समाज स्वर्ग से भी बढ़कर होता है।

2 comments:

Udan Tashtari said...

हम सब का कर्त्तव्य है कि अपनी-अपनी क्षमता और सामर्थ के अनुसार समाज सुधार के लिए समय दान करें।


--उत्तम विचार!! नव वर्ष की शुभकामनायें.

Anil Sinha said...

विचारों और व्यवहार में समृद्ध समाज स्वर्ग से भी बढ़कर होता है। मैं पूर्णतया इस विचार का समर्थन करता हूं।

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