Monday, August 14, 2006

जय-हिंद



पंद्रह-अगस्त
आज का दिन तो है ऐसा पावन
जैसे गर्मी में झुलसे को मिला हो सावन।
आज की बात हो नहीं सकती है शब्दों में,
इस दिन छुड़ाया था माँ को फिरंगी के कब्जों से,
धोखे से अधिकार की उनकी चाल थी,
ज़्यादा हालत बेटों की बेहाल थी।
ना सूझता था कोई और काम,
बस रटा हुआ था हरेक को तेरा ही नाम।
रोज नयी बात सबके मन में आती थी,
आजादी की विधि सुझायी जाती थी।
हर कोई हो रहा था कुर्बान अपने-आप,
माँ के नाम पर उमड़ रहे थे भाव।
बूढ़े,बालक-जवां सभी तो समझते थे ख़ुद को सिपाही,
जान पर खेलकर वीरता औरतों ने थी दिखायी।
अँगरेजों की चाल कुछ काम ना आयी,
देश के सपूतों ने ऐसी धूल चटाई।
तेरी इज़्ज़त तो हमारी इज़्ज़त है,
तेरे आँगन में खेले हैं , बड़ी क़िस्मत है।
किसकी मजाल की देखे इस तरह से अब,
आँखें निकाल देंगे मिलकर सब।
तेरे कण- कण पर लगा देंगे अपनी जान है,
तेरे हित काम आना हमारी शान है।
खून की बूँद भी सिंचेगी तेरा गात,
तेरे बेटे हैं काम आएँगे दिल से आज।

3 comments:

Shuaib said...

बहुत बहुत बढिया - खासकर ये वालाः

तेरे आँगन में खेले हैं , बड़ी क़िस्मत है।
किसकी मजाल की देखे इस तरह से अब,

Udan Tashtari said...

बहुत बढियां.
आपको स्वतंत्रता दिवस की बहुत मुबारकबाद.

समीर लाल

Anonymous said...

स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई.

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