यह भारत भूमि की कहानी है,
जिसकी मिसाल नहीं मिल पानी है।
हिमालय है मुकुट विशाल,
रखता है इसका उँचा भाल।
नदियाँ इसकी नाड़ी हैं,
जो सींचें फुलवाडी़ हैं।
मैदान इसके वक्षस्थल हैं,
जो पालन करते सबका हैं।
पठार मरुस्थल इसके हैं,
इसकी ममता को घेरे हैं।
सागर इसके दास हैं,
इसके चरणॊं के पास हैं।
रत्नों का भंडार यहाँ,
देखे सारा संसार जहां।
साक्ष्य भरे पड़े हैं
सब आप देख रहे हैं।
वेद इसकी वाणी हैं,
यहीं मानवता की जवानी है।
कर लो अनुसंधान कभी,
मानोगे इसे प्रधान सभी।
यह तो भूमंडल की रानी है,
जन-जन की कल्याणी है॥
2 comments:
सहज और सुंदर रचना मातृभूमि के नाम !
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