Sunday, July 09, 2006

क्रोध और सहनशीलता

क्रोध
मनुष्य का शत्रु क्रोध है,
जो जीवन की गाड़ी का अवरोध है,
उत्तेजित करता मन का क्षोभ है।
कुण्ठा में जन्म लेता है,
सारी सरसता छीन लेता है।
जब भी क्रोध आता है,
तो गर्मी फैलाता है,
सारी मोहकता ले जाता है।
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सहनशीलता
सहनशीलता एक गहना है,
जो बड़ा मँहगा है,
बहुमूल्य और दुर्लभ है,
आजकल तो बनावटी ही ज़्यादा सुलभ है।
खोज जारी है,
पर मिलना बहुत भारी है।

6 comments:

Anonymous said...

बहुत सही लिखा आपने

अनूप शुक्ल said...

सत्यवचन!

Manish Kumar said...

मनुष्य का शत्रु क्रोध है,
जो जीवन की गाड़ी का अवरोध है,
उत्तेजित करता मन का क्षोभ है।
कुण्ठा में जन्म लेता है,
सारी सरसता छीन लेता है।


पर क्या करें जानते हुये भी इससे बच कहाँ पाते हैं।

प्रेमलता पांडे said...

मनीषजी बच तो नहीं सकते-बिल्कुल सही, पर सब मिलकर कँजूसी कर सकते हैं।

ई-छाया said...

अच्छा लिखा, धन्यवाद।

jai hanuman said...

सही लिखा। तितिक्षा के बारे में बहुत कुछ कह गए हैं आदि शंकराचार्य।

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