Saturday, July 01, 2006

कल्पना

कल्पना करो कल्पना की,
उसके भावों की अल्पना की,
उसकी ढृढ़ संकल्पना की,
चुनी गयी उसकी विकल्पना की।
क्या चाह थी!
क्या राह थी!
जो चुन गयी वो,
नए तानों बानों से बुन गयी जो,
उन दुर्लभ भाव-भंगिमा की,
कल्पना करो कल्पना की।
कल्पना साकार थी,
मेहनत का आकार थी,
रखती थी हृदय-सम्पदा,
डरा ना सकी उसे कोई आपदा।
विशालता की प्रतिमान थी,
सबके दिलों का अरमान थी,
सम्मान का सम्मान थी।

(आज कल्पना चावला का जन्म-दिन है)

6 comments:

संजय बेंगाणी said...

कल्पनाजी को सुन्दर श्रद्धांजली.
कल्पना करें भारत की भूमि से ऐसी ही कल्पनाएं ब्रह्माण्ड की ओर उड़ान भरेगी...हम गर्व से सीधा-प्रसारण देखेंगे.

Anonymous said...

आपकी कल्पना कल्पना की भाँति बेजोड़ है ।

आलोक said...

c/ढृढ़/दृढ

प्रेमलता पांडे said...

शुक्रिया आलोक जी। आगे भी अनुकंपा बनाए रखें।

नीरज दीवान said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Manish Kumar said...

आपकी कविता कल्पना जी की यादें ताजा कर गईं ।

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