तुम! मां हो
मेरा पूरा जहां हो।
संसार में आए हैं तुमसे,
तुमने ही परिचय कराए हैं सबसे।
तुम्हारी पूजा करना अभिमान है,
तुम्हारी सेवा करना शान है।
बस चाहती हूं एक बात
ना बीते बिन तुम्हारे एक भी रात।
बिन तुम्हारे होंगे सारे सुख फींके,
साथ तुम्हारे हैं सारे दिन नीके।
तुम तो मेरा आधार हो,
उठाती सारा भार हो,
ना माथे पर आयी रेखा,
ना कभी कोई अवसाद देखा,
कैसे बयां करूं अपनी भावना,
हो नहीं सकती बिन तुम्हारे कोई आराधना।
जब भी होती हूँ उदास,
होता है तुम्हारे प्यार का अहसास।
नहीं होती कम कभी हिम्मत,
तुम देती हो मुझे सदा आत्मबल।
क्या क्या ना सहा तुमने हमारे लिए,
सारे कष्ट उठाए हैं ताकि हम जीएं।
तुम तो दिये का तेल हो
जो जलने से कभी रूकता नहीं,
तुम तो एक ऎसी बेल हो
जो गिरकर कभी मरती नहीं।
हमसे कभी रूठी नहीं
मुंह कभी मोड़ी नहीं,
करती हो सबकुछ अर्पण,
जीवन तुम्हारा है एक दर्पण।
4 comments:
हां,
जब भी दर्द होता है
बस 'मां' की याद आती है॥
बढ़िया कविता लिखी।
अच्छी कविता लिखी है प्रेमलता जी, कहीं छू गई।
आपके शब्द सहज, शीतल और सुंदर हैं। लिखते रहिएगा।
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