Sunday, May 21, 2006
अनुगूँज १९ "संस्कृतियाँ दो और आदमी एक"
'सब बदल गए हैं '
मापक तो वही हैं,
व्यापक भी वही हैं,
फिर क्यों संस्थापक बदल गये हैं?
उनके रीति-रिवाज़ बदल गये हैं?
बदलना था तो
बदलते कुरीतियों को
नये रिवाज़ बनाते
जोड़कर नीतियों को।
पर यह क्या कर दिया?
सारा का सारा चलन ही बदल दिया!
ना पैर ज़मीं पर है
ना सर आसमां की तरफ ,
किसी किसी बात का तो ना छोड़ा कोई हरफ।
सब यौगिक हो गये हैं,
सारे हालात बदल गये हैं
पश्चिम से रासायनिक क्रिया कर गये हैं।
किस तरह तत्व ज्ञान समझाऊं?
मूल तत्व तो रहा ही नहीं,
सब नया पदार्थ बन गये हैं।
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7 comments:
किस तरह तत्व ज्ञान समझाऊं?
मूल तत्व तो रहा ही नहीं,
सब नया पदार्थ बन गये हैं।
sahi kaha aapne mool tatwa ko sanjo kar rakhne ki juroorat hai.
har sanskriti ke achche binduon ko jeewan ki vichardhara mein samahit kar pana kathin juroor par asambhav nahin hai .
कविता अच्छी है। कृपया मेरी कोशिश भी जांचें ।
बहुत बढियां प्रेमलता जी. अपनी बात बहुत सुंदरता से रखी है आपने.
मनीष जी, रत्ना जी और समीर भाई रचना पसंद करने के लिए धंयवाद।
शुभेच्छु
प्रेमलता
मुक्त छन्द में आपने मन के आंतरिक संघर्ष की छुअन को कविता में प्रस्तुत किया है। डॉ॰ व्योम
बहुत सुन्दर पन्क्तियॉ हैं, बहुत कुछ कह दिया है आपने।
प्रेमलता जी,
आपका धन्यवाद कि आपने इस विषय पर अपने विचार कविता के रूप में व्यक्त किए।
बहुत सही बात लिखी है आपने, मेरी शुभकामनाएँ स्वीकारें।
"सब यौगिक हो गये हैं,
सारे हालात बदल गये हैं
पश्चिम से रासायनिक क्रिया कर गये हैं।
किस तरह तत्व ज्ञान समझाऊं?
मूल तत्व तो रहा ही नहीं,
सब नया पदार्थ बन गये हैं।"
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