Saturday, May 06, 2006

तुम तूफ़ान बनो

बड़ी तेज़ गर्मी थी
दुनिया हाहाकार करती थी।
पत्ता नहीं कोई हिलता था
हर कोई तपता था।
तभी अचानक तूफ़ान आया
साथ में बादल भी लाया।
पहले अवर्णित हवाएं चलीं
पूरी धूल उड़ा चलीं।
जो कुछ था हल्का-फुल्का
पता नहीं था उसको कहीं का।
भारी-भरकम भी ठहरे नहीं थे
ज़मीं पर टिके नहीं थे।
तभी बादल को भी जोश आया
पूरा दम बरसने में लगाया।
जो धरा तप रही थी
वो अब महक़ रही थी।
ताप शीतल हो गया
तूफ़ान शांत हो गया।
पृथ्वी मुस्कराती थी
हरी-भरी लहलहाती थी।
तुम तूफ़ान बन सकते हो
बादल की तरह बरस सकते हो।
बहुत आपाधाप है
चारों तरफ़ संताप है
तुम उसे शांत करो।
तूफ़ान बन उड़ा दो बुराई
प्रेम की बरसात से शांत हो लड़ाई।
हर तरफ़ शीतल बयार बहे
ना कहीं ईर्ष्या जलन का भाव रहे।
चारों तरफ़ सत्य-अहिंसा की हो खुशबु
सुंदर सजे मानवता की आबरू।

1 comment:

Udan Tashtari said...

हर तरफ़ शीतल बयार बहे
ना कहीं ईर्ष्या जलन का भाव रहे।
चारों तरफ़ सत्य-अहिंसा की हो खुशबु
सुंदर सजे मानवता की आबरू।
---बहुत अच्छा मेसेज है...

समीर लाल

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