Thursday, April 20, 2006

सौंदर्य

सौंदर्य वो है जो मन में सजे,
अपने आप ही सब पर फबे।
सुंदर है फूल,
चाहे कितने हों उसमें शूल।
सुंदर है गगन,
तारों के साथ है मगन।
सुंदर है दिनेश,
गर्म होकर भी है जीवेश।
सुंदर है पवन,
रखता है सबका जीवन।
सुंदर है जल,
जो जीवन का है बल।
सुंदर है धरा,
सौंदर्य जिसमें भरा।
सुंदर है रसातल,
जो छिपाए है हमारा कल।
सुंदर है मानवता,
जो सृष्टि की है छटा।
हां , सुंदरता नैसर्गिक होती है,
जो मन को झकझोर देती है।
फिर क्यों बाहरी फैशन पर ग़ौर हो गया है ?
क्या आंतरिक सौंदर्य कमज़ोर पड़ गया है ?

1 comment:

Manish Kumar said...

फिर क्यों बाहरी फैशन पर ग़ौर हो गया है ?
क्या आंतरिक सौंदर्य कमज़ोर पड़ गया है ?

dikkat yahi hai ki aantrik saundarya ko pahchanne samjhne mein waqt lagta hai jabki brahya saundarya instant coffee ki terah jhat se humein vashibhoot katr leta hai!

achcha likha hai aapne!

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