बात करने से क्या होगा?
हाथ रखने से क्या होगा?
क़ानून से ना होगा,
सज़ा देने से भी ना होगा,
परिवर्तन तो तभी होगा
जब उतार देगा समाज यह चोगा।
समाज तो हमसे बना है,
हरेक उसमें रमा है,
जब भी परिवर्तन कि बात आती है
हमारी पोलपट्टी खुल जाती है,
परिवर्तन की राह रोक दी जाती है।
इस तरह कुछ ना होगा,
समाज को तोड़ना होगा,
अच्छाई से बुराई को छांटना होगा,
सुख़-दुख़ को बांटना होगा,
कुरीतियों को छोड़ना होगा,
नीतियों को जोड़ना होगा।
परिवर्तन तो तभी होगा,
जब जन जागरण होगा,
जनजागरण तो ज्ञान के प्रकाश में होगा।
पहले इकाई होगी,
फिर दहाई मिलेगी,
धीरे-धीरे सैकड़ा होगा,
बाद में तो सहस्रों सहस्र का रेला होगा,
फिर ना कुछ सोचना होगा,
परिवर्तन तो हर हाल में होगा,
समाज का पुननिर्माण भी होगा।
3 comments:
बिलकुल सही कहा है आपने,
ये होगा, जरूर होगा और जल्दी होगा!
परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है, समय लग सकता है, संयम टूट सकता है, मगर परिवर्तन तो हो कर रहेगा.
बहुत बढियां, बधाई.
समीर लाल
कविता बहुत अच्छी, उत्साहपूर्ण और आशा का संचार करने वाली है |
Post a Comment