Sunday, April 16, 2006

जीवन में रहो सदा......

कभी ओर बन कर,
कभी छोर बन कर,
जीवन में बहो
सदा किनारे बन कर।

कभी सर्द बन कर,
कभी गर्म बन कर,
जीवन में उड़ो
सदा फुहारें बन कर।

कभी फूल बन कर,
कभी शूल बन कर,
जीवन से जुड़ो
सदा बहारें बन कर।

कभी धूल बन कर,
कभी बूंद बन कर,
जीवन में रहो
सदा निस्तारे बन कर।

कभी धूप बन कर,
कभी छांव बन कर,
जीवन में खड़े हो
सदा सहारे बन कर।

कभी रात बन कर,
कभी बात बन कर,
जीवन में चलो
सदा प्यारे बन कर।

कभी सुख बन कर,
कभी दुख बन कर,
जीवन में पड़ो
सदा तुम्हारे बन कर।

1 comment:

Udan Tashtari said...

अच्छा लिख रहीं हैं, बधाई.
समीर लाल

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