५८वें गणतंत्र-दिवस पर ढेरों शुभकामनाएँ।
गणतंत्र की ५७वीं वर्षगांठपर हम सब अपने देश की समृद्धि और उन्नति की कामना करते हैं। सर्वत्र खुशहाली हो और हम सभी अपने मन, वचन और कर्म से अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार देश की उन्नति में सहयोग देते रहें।
आज उत्सव का दिन है। हर तरफ़ रौनक़ है।
प्रस्तुत हैं कुछ शब्द-
"गगन में बादल घिरे,
पवन सौरभ भरे,
धरती पर हरियाली फबे,
चलो जय-गान करें
जन्मभूमि के भाव भरें।
पक्षियों के गीत पर,
नदियों के संगीत पर,
घन-गर्जन की ताल पर,
बरखा की झमझम के
घुंघरु बांधकर,
हरी घास के मंच पर,
मोरों के पंख बन,
मतवाले आज चलें।
मातृभूमि के भाव भरें।
फसल भरे खेतों में,
नदिया किनारे रेतों में,
पहाड़ों की घाटी में,
प्राण-प्यारी मांटी में,
सागर की लहरों के संग,
झरनों से मुदित मन,
फूलों की मुस्कान सम,
डालियों के संकेत पर ,
सब मिल काज करें,
मातृभूमि के भाव भरें॥
(पुरानी रचना है)
Friday, January 26, 2007
गणतंत्र-दिवस
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6 comments:
गणतंत्र दिवस पर आपको भी हार्दिक शुभकामनायें.रचना सुंदर है. ऐसी रचनायें पुरानी नहीं होती.
देश के उपर अच्छी लिखी कविताओं का सर्वथा अभाव रहा है,बहुत सुंदर…
आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ!!!
ओजपूर्ण रचना ..
आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बढ़िया लगी कविता-पुराने चावल की तरह!
आजकल लिखना क्यूँ बंद है?? लिखिये न!
'पसंद' पर लिख रही हूँ।
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