Monday, January 22, 2007

आम जीवन...

(४)


कल बसंत-पंचमी है। अन्तर्जाल पर शुद्ध देसी और देहाती खाने की बात भी कर लेते हैं।
बसंत-पंचमी पर पीला भोजन खाने का रिवाज़ है। केसर, बादाम-पिस्ता और काजू-किशमिश वाले पीले मीठे चावल तो सभी खाते हैं, कुछ नमकीन अवश्य चाहिए मंदिर में भोग लगाने के लिए।
कहा जाता है कि अब से मौसम में बदलाव शुरु हो जाता है तो क्यों ना जात-जाते मक्की की स्वादिष्ट कचौड़ियों का रसास्वादन किया जाए।
मक्की के आटे (घर -ज़रुरत के हिसाब से ) के बराबर उबले हुए आलू को कसकर आटे के साथ उसमें स्वादानुसार हींग, नमक, हरीमिर्च, लालमिर्च और हरे धनिये की पत्तियाँ डालकर सख़्त गूंथ लें। तत्पश्चात गहरी कढ़ाई में तेल डाल कर आग पर गर्म होने रखदें। जब तेल तलने लायक गर्म हो जाए तो उसमें गूंथे हुए आटे की हाथ से ही बहुत छोटी-छोटी टिक्की बनाकर तलने के लिए डाल दें। ध्यान रहे टिक्की मोटी ना रहें, वरना अंदर से कच्ची रह जाएगीं। धीमी आग पर सेंकें। जब सुनहरे- भूरे रंग की हो जाएं तो निकाल लें। मीठी और खट्टी चटनी के साथ परोसें और स्वाद लें और बताएं कैसी बनीं?
कुछ लोग चटनी कि बजाय छोले या मीठी दही से भी खाना पसंद करते हैं।

2 comments:

Divine India said...

ur recipe is always good...keep doing...that's great

Udan Tashtari said...

एक तो वजन वैसे ही संभाले नहीं संभल रहा. उबला खाना खाकर किसी तरह मन को संभाला हुआ है और आपकी तो रेसिपि पढ़कर ही एक हफ्ते की मेहनत पर पानी फिर गया. पत्नी सोचती है कि बाहर से कुछ खा लेता हूँ. अब क्या बताऊँ कि यह तो सिर्फ़ रेसिपि पढ़कर ही बढ़ रह है, खा लें तो भगवान ही मालिक है.

:) :)

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