कबूतर के अंडों को देखकर
कौआ यूँ ताकता है,
मानों यह तो उसके लिए ही
तैयार किया हुआ नाश्ता है,
फिर आता है
थोड़ा घौंसले के पास,
तेज हो जाती है
कबूतरी की साँस।
काँव-काँव करता है कौवा आसपास।
इच्छा है उसकी
अंडों को खा जाने की आज।
बस देखा ज़रा मौका
तो फोड़कर चख लिया,
सब कुछ खाकर,
अंडे का कवर फेंक दिया।
कभी-कभी तो
बच्चे भी खा जाता है,
और कबूतर बेचारा तो
देखता ही रह जाता है,
सोचता है
यह आतंकवादी है,
इसने पहनी
काली डरावनी वर्दी है।
इसे तो बस
अपने बारे में सोचना आता है,
दूसरों का जीवन
अपने लिए नष्ट करना आता है।
यही तो ढंग आतंकवादियों का है,
बना रखा खिलौना आदमियों का है।
घर, सड़क, बाज़ार
सभी जगह हैं इनके आसार।
क्या बात करें आम जगह की,
ना छोड़ी है इन्होंने विशेष सतह भी।
पर अब वो ढंग कर लिया है,
मानो गीदड़ ने शहर की ओर
मुँह कर लिया है।
अबतक छिपकर आतंक फैलाया है,
लगता है अब इनका अंत निकट आया है।
5 comments:
कौवे और आतंकवादियों की प्रवृत्ति समान हैं।बहुत खूब।
-भारद्वाज
इनका अंत निकट आने वाला नहीं।
आतंकवादी तो सिर्फ मुहरें हैं । जब तक विभिन्न देशों और लोगों के बीच आपसी द्वेष, अविश्वास खत्म नही होगा ये सब चलता रहेगा। ये कृत्य तो घृणित है ही पर ये भी देखिये कि न्याय के नाम पर पूरे देश नेस्तानाबूद कर दिये जाते हैं। वो भी एक तरह का आतंक ही है।
बहुत खूब।
चंदाजी और इ-शेडो जी धन्यवाद।
मनीषजी हर उँचा चढ़ा ग्राफ हमेशा नीचे आता है। यही नियति है।
dood mago ge kheer denge kashmir mago ge chir denge
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