चींटी तुमने क्या दृढ़ इच्छा-शक्ति पायी है !
सारी सृष्टि की बात झुठलायी है।
ना सोती हो, ना रोती हो,
सारा जीवन कर्म का बोझ ढ़ोती हो !
क्या तुम्हें आराम करना अच्छा नहीं लगता?
या फिर काम करना ही आराम लगता है।
हम तो जल्दी थक जाते हैं,
पूरा पूरा आराम फरमाते हैं,
इस पर भी अनेक रोग लग जाते हैं,
सारा बल डाक्टर के पास जाने में लगाते हैं।
तुम कभी बीमार नहीं होतीं ?
ना कभी डाक्टर की सलाह लेतीं,
बस इधर से उधर जाती रहती हो,
सब मिलकर भगती रहती हो।
क्या यह बात मनुष्य को नहीं समझाओगी,
उसका शरीर आरामपरस्त हो गया है।
उसका सारा ध्यान सुखों की ओर हो गया है,
उसे इतना नहीं बतलाओगी ?
परिश्रम से ही ज़िंदगी संवरती,
आराम से ही परेशानी मिलती।
2 comments:
"हम तो जल्दी थक जाते हैं,
पूरा पूरा आराम फरमाते हैं,
इस पर भी अनेक रोग लग जाते हैं,
सारा बल डाक्टर के पास जाने में लगाते हैं।"
वाह, प्रेमलता जी.बहुत खुब.
समीर लाल
कविता की सराहना के लिए धंयवाद समीर जी। प्रेमलता
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