वंदन करते हैं हॄदय से
वंदन करते हैं हॄदय से,
याचक हैं हम ज्ञानोदय के,
वीणापाणी शारदा मां !
कब बरसाओगी विद्या मां?
कर दो बस कल्याण हे मां।
हे करुणामयी पद्मासनी!
हे कल्याणी धवलवस्त्रणी!
हर लो अंधकार हे मां,
कब बरसाओगी विद्या मां ?
कर दो बस कल्याण हे मां।
जीवन सबका करो प्रकाशित,
वाणी भी हो जाए सुभाषित,
बहे प्रेम करुणा हॄदय में,
ना रहे अज्ञान किसी में,
ऎसा दो वरदान हे मां,
कर दो बस कल्याण हे मां।
ज्ञानदीप से दीप जले,
विद्या धन का रुप रहे,
सौंदर्य ज्ञान का बढ़ जाए,
बुद्धी ना कुत्सित हो पाए,
ऎसा देदो वरदान हे मां!
कर दो बस कल्याण हे मां!
कर दो बस कल्याण हे मां॥
वंदन करते हैं हॄदय से,
याचक हैं हम ज्ञानोदय के,
वीणापाणी शारदा मां !
कब बरसाओगी विद्या मां?
कर दो बस कल्याण हे मां।
हे करुणामयी पद्मासनी!
हे कल्याणी धवलवस्त्रणी!
हर लो अंधकार हे मां,
कब बरसाओगी विद्या मां ?
कर दो बस कल्याण हे मां।
जीवन सबका करो प्रकाशित,
वाणी भी हो जाए सुभाषित,
बहे प्रेम करुणा हॄदय में,
ना रहे अज्ञान किसी में,
ऎसा दो वरदान हे मां,
कर दो बस कल्याण हे मां।
ज्ञानदीप से दीप जले,
विद्या धन का रुप रहे,
सौंदर्य ज्ञान का बढ़ जाए,
बुद्धी ना कुत्सित हो पाए,
ऎसा देदो वरदान हे मां!
कर दो बस कल्याण हे मां!
कर दो बस कल्याण हे मां॥
5 comments:
नारायण! नारायण!
हिन्दी चिट्ठाकारों के परिवार मे तुम्हारा स्वागत है।किसी भी प्रकार की मदद की जरुरत हो तो हमे याद किया जाए।
कविता बहुत सुन्दर बन पड़ी है। सरस्वती वन्दना के आगे भी तो लिखो,पूरा परिवार व्याकुल है अगली पोस्ट पढने के लिये।
नारायण! नारायण!
प्रेमलता जी,
हिन्दी चिठ्ठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. बहुत अच्छी शुरुआत की आपने, बस कलम ( की बोर्ड ) को अविरत चलने देना. में सोचता हुं कि अगर आप बरहा प्रयोग करे तो ज्यादा अच्छा होगा, ज्ञ शब्द इस तरह लिखे j~J (in baraha)
माफ़ किजीये इस तरह लिखें j~j
नारद जी मुक्तिद्वार दिखाने के लिए आभार व्यक्त करती हूं। अब जब रास्ता सूझ गया है तो रुकने का प्रश्न ही नहीं है। कविता की सराहना के लिए धन्यवाद।
नाहर जी प्रोत्साहन और 'ज्ञ' लिखना सिखाने के लिए धन्यवाद।
शुभेच्छु
प्रेमलता पांडे
रचना बहुत सुंदर है, बधाई.और रचनाओं का इन्तज़ार रहेगा.स्वागतम, प्रेमलता जी.
समीर लाल
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