Friday, January 26, 2007

गणतंत्र-दिवस

५८वें गणतंत्र-दिवस पर ढेरों शुभकामनाएँ।
गणतंत्र की ५७वीं वर्षगांठपर हम सब अपने देश की समृद्धि और उन्नति की कामना करते हैं। सर्वत्र खुशहाली हो और हम सभी अपने मन, वचन और कर्म से अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार देश की उन्नति में सहयोग देते रहें।
आज उत्सव का दिन है। हर तरफ़ रौनक़ है।
प्रस्तुत हैं कुछ शब्द-

"गगन में बादल घिरे,
पवन सौरभ भरे,
धरती पर हरियाली फबे,
चलो जय-गान करें
जन्मभूमि के भाव भरें।
पक्षियों के गीत पर,
नदियों के संगीत पर,
घन-गर्जन की ताल पर,
बरखा की झमझम के
घुंघरु बांधकर,
हरी घास के मंच पर,
मोरों के पंख बन,
मतवाले आज चलें।
मातृभूमि के भाव भरें।
फसल भरे खेतों में,
नदिया किनारे रेतों में,
पहाड़ों की घाटी में,
प्राण-प्यारी मांटी में,
सागर की लहरों के संग,
झरनों से मुदित मन,
फूलों की मुस्कान सम,
डालियों के संकेत पर ,
सब मिल काज करें,
मातृभूमि के भाव भरें॥

(पुरानी रचना है)

Tuesday, January 23, 2007

बसंत-पंचमी

बसंत ऋतु का स्वागत है। बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंच-तत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रुप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर है तो जल! पीयूष के समान सुखदाता! और धरती! उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है! ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता! धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं।
सच! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना!!! पुनर्जन्म जो हो जाता है! श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्ल्व नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है।
हमें इस सौंदर्य का मात्र वर्णन ही नहीं करना चाहिए बल्कि उसके अस्तित्त्व को बचाए रखने के लिए भी तत्पर रहना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे किसी देश की सीमा पर प्रहरी रक्षा के लिए सजगता से खड़े रहते हैं। यदि हमने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया तो वह दिन दूर नहीं जब प्रकृति का सौंदर्य केवल पढ़ा ही जा सकेगा या विलुप्त-जीवन की श्रेणी में दिखायी देगा! प्रकृति की सेवा अपने तन-मन-धन से करना और उसके जीवन के हर रुप को बनाए रखना ही हमारी बसंत-पंचमी की सच्ची पूजा है।
अब प्रस्तुत हैं पिछले साल 'श्रद्धांजलि' पत्रिका के लिए लिखे कुछ हाइकू -
( इनमें पौराणिक-कथाओं में वर्णित बसंत के महत्त्व को ही लिखने की चेष्टा की है।)-
बसंत

बसंत भरा
मानो पीत है धरा
अल्हड़ जरा।

महकी हवा
तनमन सा खिला
प्यार में डूबा।

बेलें मुस्काएं
भंवरे पास आएं
कली लजाएं।

मस्त बहार
डोली में दुल्हन

ढोएं कहार।

शिव भी जगे
काम व्यापन लगे
क्रोध में भरे।

बसंत छाए
काम कांपन लगे
रति डराए।

त्रिनेत्र खोले
काम भस्मी बनाई
सब में डोले।

प्यार के पगे
शिव-पार्वती संग
नाचन लगे।

देवता हंसे
शंकर खूब फंसे
स्रष्टि को रचें।

सभी सुखमय रहें ऐसी मनोकामना के साथ।

Monday, January 22, 2007

आम जीवन...

(४)


कल बसंत-पंचमी है। अन्तर्जाल पर शुद्ध देसी और देहाती खाने की बात भी कर लेते हैं।
बसंत-पंचमी पर पीला भोजन खाने का रिवाज़ है। केसर, बादाम-पिस्ता और काजू-किशमिश वाले पीले मीठे चावल तो सभी खाते हैं, कुछ नमकीन अवश्य चाहिए मंदिर में भोग लगाने के लिए।
कहा जाता है कि अब से मौसम में बदलाव शुरु हो जाता है तो क्यों ना जात-जाते मक्की की स्वादिष्ट कचौड़ियों का रसास्वादन किया जाए।
मक्की के आटे (घर -ज़रुरत के हिसाब से ) के बराबर उबले हुए आलू को कसकर आटे के साथ उसमें स्वादानुसार हींग, नमक, हरीमिर्च, लालमिर्च और हरे धनिये की पत्तियाँ डालकर सख़्त गूंथ लें। तत्पश्चात गहरी कढ़ाई में तेल डाल कर आग पर गर्म होने रखदें। जब तेल तलने लायक गर्म हो जाए तो उसमें गूंथे हुए आटे की हाथ से ही बहुत छोटी-छोटी टिक्की बनाकर तलने के लिए डाल दें। ध्यान रहे टिक्की मोटी ना रहें, वरना अंदर से कच्ची रह जाएगीं। धीमी आग पर सेंकें। जब सुनहरे- भूरे रंग की हो जाएं तो निकाल लें। मीठी और खट्टी चटनी के साथ परोसें और स्वाद लें और बताएं कैसी बनीं?
कुछ लोग चटनी कि बजाय छोले या मीठी दही से भी खाना पसंद करते हैं।

Friday, January 19, 2007

आम-जीवन...

आँवले के खट्टे और कसैले स्वाद के कारण बहुत लोग इसे कच्चा सेवन करने से कतराते हैं, तो चलिए आज इसका अचार भी बना लेते हैं। आँवले का अचार दोनों स्वाद (नमकीन और मीठा) का बनाया जाता है।
आँवलों को अच्छी प्रकार धोकर छाया में पूरी तरह सूखने के लिए छोड़ दें। जब बाहरी नमीं बिल्कुल समाप्त हो जाए तब अपनी पसंद से टुकड़ों में काट लें। अब अपने स्वाद और इच्छानुसार पिसे हुए नमक, कालानमक, कालीमिर्च, लालमिर्च, धनिया-सौंफ (दरदरा करलें), सौंठ-चूर्ण और चुटकी भर हल्दी को आग पर ज़रा सा अकोर लें। स्मरण रहे सभी मसाले साफ और अन्न के संपर्क से दूर रहें हो वही प्रयोग करें अन्यथा अचार खराब हो सकता है। अब एक बड़ा चम्मच सरसों का तेल आग पर उबाल कर ठंडा कर लें। आंवले के टुकड़े और सभी मसालों को उसी बर्तन में जिसमें अचार रखना है, डालकर ऊपर से वह तेल डालकर बर्तन का ढक्कन बंद करके अच्छी तरह हिला दें ताकि मसाले हर टुकड़े तक पहुँच जाएं। अब इस बर्तन को यदि वह पारदर्शी है तो कपड़े से ढककर तेज धूप में रखें, अन्यथा ऐसे ही धूप में रख दें। दो या तीन दिन बाद स्वाद लें।
उपरोक्त अचार को बनाते समय ही यदि तेल के स्थान पर इसमें चीनी आवश्यकतानुसार डालकर हफ्ता-दस दिन तक सुखाएं तो मीठा अचार बन जाता है। हमें ध्यान रखना है कि आंवला ताज़ा हो, साफ और पूरी तरह सुखा लिया हो। ज़रा भी अन्न का स्पर्श अचार को ख़राब कर देता है।

Monday, January 15, 2007

याद आती है...

याद आती है...

हम सभी अपना जीवन सुख से व्यतीत करना चाहते हैं, पर क्या बिना दुखों के सुख पता चलते हैं? क़ुदरत ने इसे अपने हाथ में रखा है। प्रकृति स्वयं कहर बरपा देती है। कभी चक्रवात, कभी सुनामी जैसी आपदाएँ तो कभी भूकंप के झटके!!! हम बेवस हो जाते हैं और आह ही भरते रह जाते हैं। प्राकृतिक-आपदाओं से सृष्टि की जो हानि होती है वह हमें इस नश्वर संसार की नीयत लगती है फिर भी मन नही समझता! मेरे मन में उन स्कूली बच्चों की याद ताज़ा हो जाती है जो २६जनवरी २००१ को भुज में आए भूकंप में राष्ट्रीय-पर्व मनाते हुए राष्ट्र की मिट्टी के गुण-गान गाते हुए उसी में समा गए थे। उस समय मैं ने उनके लिए ये शब्द लिखे थे-

देखा भी ना था कभी जिन्हें,
रोते हैं रह-रह कर अब उन्हे।
आए थे हंसते-मुस्कराते सभी,
समझे भी ना थे कि समां गए ज़मीं में तभी।
एक दम धरा हिल उठी,
चारों ओर से फट पड़ी,
डोल गयी वसुंधरा,
हो गयी कंपित महा।
मकान-दुकान ढह गए,
पेड़-पौधे गिर गए।
समस्त पृथ्वी हौल गयी,
सृष्टि को लील गयी,
और खंडहर में बदल गयी।
परंतु याद उनकी आती है,
बहुत ज़्यादा सताती है,
जो आए थे देश का गुणगान करने,
पता किसको था जा रहे हैं दबने!
सज-धजकर खड़े थे पंक्ति में,
राष्ट्रगान गाने की जल्दी में।
तभी पृथ्वी थर्रायी!
अपने आप गुर्रायी!
झटके से गोद फैलायी!
लगती थी हो जैसे ललचायी!
सभी बच्चे हिल गए,
चीत्कार कर गए।
पर ना था कोई बचानेवाला!
वार कर रहा था ख़ुद बनाने वाला!
देखते ही देखते सब शांत हो गया!
सारा शहर क़ब्रिस्तान हो गया!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मुझे वसुंधरा से है यह शिकायत,
क्या बिगड़ जाता?
जो उन बच्चों पर करती इनायत!
वो तो चले गए सब कुछ छोड़कर,
तेरे पास हमसे नाता तोड़कर!
पर तू भी तो उन्हें देखकर सुख ना पाएगी,
उनकी आत्मा के सवालों से बहुत लजाएगी!
क्यों किया तूने यह अनाचार?
क्या कारण था-
जो थी इतनी लाचार?
या फिर समझ लें यह तेरा अत्याचार?

Friday, January 12, 2007

आम जीवन...

(२)

इससे पहले वाली पोस्ट में जो लिखा था उसका आशय है कि कच्चे आँवले खाने से स्वास्थ्य और सौंदर्य दोनों में ही इज़ाफा होता है। कच्चे आँवले का कोई विकल्प नहीं है, परंतु हर समय और हर जगह कच्चे आँवले उपलब्ध ही हो जाएं यह भी संभव नहीं है तो फिर उनका लाभप्रदरूप में सेवन किस प्रकार किया जाए इसकी चर्चा करते हैं।
सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कच्चे-आँवलों को कभी भी प्रत्यक्ष अर्थात सीधे-सीधे धूप में या आग पर गर्म ना करें। आँवला सर्वाधिक नाज़ुक फल माना गया है। यहाँ तक कि धूप में सुखाने मात्र से ही इसकी पौष्टिकता समाप्त हो जाती है। इसलिए पहले समय में लोग आँवलों को छाया में या ढ़ककर सुखाते थे।
अब कच्चे और सूखे आँवलों के अन्य घरेलू फायदों की चर्चा करते हैः
- कच्चे आँवलों को काटकर गुठली निकाल लें, उसके टुकड़ों को अपनी आवश्यकतानुसार मात्रा में लेकर पीसकर गाढ़ा पेस्ट बना लें। ऐसा पेस्ट प्रतिदिन बालों में लगाने से महीने -डेढ़ महीने में बालों का रंग परिवर्तित हो जाएगा और प्रयोकर्ता फूले नहीं समाएँगे।
- इसी पेस्ट को बनाते समय उसमें ठीक आधी मात्रा में नीम की मुलायम पत्तियाँ भी पीस ली जाएं और उस पेस्ट को बालों में नियमित रुप से लगाया जाए और लगाकर लगभग डेढ़ या दो घंटे बाद सिर धोया जाए तो बालों में चमक तो आएगी ही रंग भी बदल जाएगा साथ ही साथ बालों की रुसी भी बिल्कुल समाप्त हो जाएगी, तो फिर मंहगे और रसायनों से बने बालों की सुरक्षा या सौंदर्य के प्रसाधनों की ज़रुरत महसूस होगी?

शेष फिर…

Monday, January 08, 2007

आम-जीवन

(१)

आम जीवन में हम सभी अपने मन और शरीर को ठीक रखना चाहते हैं, परंतु कुछ बातों पर हमारा ज़ोर नहीं चलता है। आजकल के व्यस्त जीवन में संतुलित खाना और शरीर की ज़रुरत के अनुसार खाने की चीजों का चुनाव करना शिक्षित समाज को बहुत अच्छी तरह से आता है, परंतु समय का क्या करें वह तो सीमित है। कार्य-समय इतना ज़्यादा होता है कि लोग चाहकर भी अपने लिए वह नहीं कर पाते हैं जो आसानी से कर सकते हैं। मैं यहाँ कुछ बातें लिख रही हूँ जिनसे मैं ने लोगों को लाभान्वित होते देखा है।
आँवला: आँवले से हर व्यक्ति परिचित है और उसके गुणों को भी बख़ूबी जानता है, फिर भी सेवन करने में नियमित नहीं हो पाता है।
हम सभी जानते हैं आँवला यूँ तो बारहमास मिल जाता है परंतु सर्दी में ही इस पर फल आते हैं। आजकल बाज़ार में ताज़ा और रसीला आँवला आसानी से और सस्ते दाम में मिल रहा है। यदि प्रतिदिन दो कच्चे आँवलों का सेवन निराहार किया जाए तो-
- जिनको ज़ुकाम खांसी या गला जल्दी-जल्दी खराब होने की परेशानी से जूझनना पड़ता इससे उन्हें या तो पूरी तरह निज़ात मिल जाएगी या फिर बहुत कम शिकायत रहेगी। लेकिन यह स्वस्थ व्यक्ति को सेवन करना चाहिए। बीमार को तो हमेशा अपने निजी-डॉक्टर से ही सलाह करनी चाहिए।
कच्चा आँवला खाना कुछ लोगों को भाता नहीं है। कुछ कड़वा कहते हैं तो कुछ खट्टा! इसका सीधा सरल उपाय है कि रात को आँवलों को धोकर छोटा-छोटा काटकर आधे गिलास उबले हुए (ठंडॆ) पानी में कांच के गिलास में ढ़ककर रख दें और सुबह निराहार उस पानी को पी जाएं। ऐसा लगातार नियमित रुप से करने से इतने अधिक फायदे होते है कि यहाँ गिनाना भी मेरे लिए संभव नहीं है। फिर भी कुछ लिख रही हूँ:
- विटामिन 'सी' और कैलशियम की कमी समाप्त हो जाएगी जिससे बालों का झड़ना और टूटना समाप्त हो जाएगा साथ ही बालों में चमक और सुंदरता बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं ज़्यादा समय तक सेवन करने से बाल काले तो बने ही रहेंगे साथ ही सफेद बाल भी काले हो जाएंगे।
- दाँतों के लिए भी यह अमृत है। मेरे नानाजी जिनका निधन आज से साठ साल पहले नब्बे साल की आयु में हुआ था उनके दांत कभी ख़राब नहीं हुए और तीसरी बार उग आए थे। वे जीवन-पर्यंत प्रतिदिन आँवले का सेवन करते रहे। उन्हें कभी कोई बीमारी नहीं हुई।
शेष फिर कभी।

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